• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. Meaning of the Supreme Courts decision on Hindenburg

हिंडेनबर्ग पर शीर्ष न्यायालय के फैसले के मायने

modi supreme court
अडानी हिंडेनबर्ग मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले का पहला विवेकशील निष्कर्ष यह है कि सरकार के विरुद्ध किसी मुद्दे को उठाने और उसे बड़ा बनाने के पहले उस पर पर्याप्त शोध और सोच-विचार किया जाना चाहिए। न्यायालय के फैसले को आधार बनाएं तो हिंडेनबर्ग रिपोर्ट को लेकर भारत और भारतीयों के संपर्क से पूरी दुनिया में जो बवंडर खड़ा हुआ, शेयर मार्केट से लेकर स्वयं गौतम अडानी की कंपनियों को जो नुकसान पहुंचा तथा नरेंद्र मोदी सरकार को लेकर पैदा हुआ संदेश सभी तत्काल निराधार साबित हुए हैं। 
 
न्यायालय यह कहते हुए याचिकाओं को निरस्त कर दिया कि हिंडेनबर्ग के आरोपों की जांच के लिए सीट या विशेष जांच दल गठित करने यानी किसी दूसरी एजेंसी को सौंपने की आवश्यकता नहीं है। याचिकाकर्ताओं की ओर से बार-बार सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड आफ इंडिया यानी सेबी की जांच को प्रश्नों के घेरे में लाने को भी न्यायालय ने सही नहीं माना तथा उसकी जांच से संतुष्टि व्यक्त की। सेबी अब तक 24 में से 22 मामलों की जांच पूरी कर चुकी है।
 
सही है कि शीर्ष न्यायालय ने सेबी और भारत सरकार से कहा है कि निवेशकों की रक्षा के लिए तत्काल उपाय करें, कानून को सख्त करें तथा जरूरत के मुताबिक सुधार भी। यह भी कहा कि सुनिश्चित करें कि फिर निवेशक इस तरह की अस्थिरता का शिकार नहीं हो, जैसा कि हिडेनबर्ग रिपोर्ट जारी होने के बाद देखा गया था।

ध्यान रखिए कि न्यायालय द्वारा न्यायमूर्ति सप्रे की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञों की समिति की रिपोर्ट पर भी विचार किया गया। इस समिति ने भी शेयर निवेश की सुरक्षा से संबंधित सुझाव दिए हैं। न्यायालय ने उसे शामिल करने को कहा है। वास्तव में फैसले का यह पहलू स्वाभाविक है क्योंकि हिडेनबर्ग रिपोर्ट के बाद अडानी समूह के शेयरों में जिस ढंग से गिरावट आई उससे पूरा भूचाल पैदा हो गया था। 
 
आगे ऐसा ना हो इसका सुरक्षा उपाय करना आवश्यक है और इसी ओर न्यायालय में ध्यान दिलाया है। इसमें कोई अगर किसी भी तरह हिंडेनबर्ग रिपोर्ट में थोड़ी सच्चाई देखता है वह उसकी समझ पर प्रश्न खड़ा होगा। न्यायालय के फैसले से साफ हो गया है कि गौतम अडानी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगाए गए आरोप निराधार ही थे। किंतु भारत की राजनीति और एक्टिविज्म की दुनिया में शिकार करने का चा रित्र। इसलिए पहले सेबी और फिर आप न्यायालय को भी कटघरे में खड़ा करने का अभियान चल रहा है।
 
यह स्थिति चिंताजनक है। अगर उच्चतम न्यायालय को हिडेनबर्ग रिपोर्ट में थोड़ी भी सच्चाई दिखती तो उसके आदेश में यही लिखा होता कि आगे कोई भी कंपनी किसी तरह अपने प्रभाव का लाभ न उठा पाए इसके लिए सुरक्षा उपाय करें। उसने ऐसा नहीं कहा है। उसका कहना इतना ही है कि अगर कहीं से फिर ऐसी रिपोर्ट आ गई तब शेयर मार्केट में निवेशकों को कैसे सुरक्षित रखा जाए इसकी व्यवस्था होनी चाहिए।

उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा है कि केंद्र सरकार की जांच एजेंसी के रूप में सेबी जांच करें कि क्या हिंडनबर्ग रिसर्च और किसी अन्य संस्था की वजह से निवेशकों को हुए नुकसान में कानून का कोई उल्लंघन हुआ है? यदि हुआ है तो उचित कार्रवाई की जाए। 
 
याचिकाकर्ताओं ने कई नियमों में खामियों की बात उठाई थी जिसे न्यायालय ने खारिज कर दिया। न्यायालय ने कहा कि संशोधन से नियम सख्त हुए हैं। खोजी जर्नलिस्ट संगठन की रिपोर्ट को भी खारिज किया गया और कहा कि यह सेबी की जांच पर सवाल उठाने के लिए मजबूत आधार नहीं है, इन्हें इनपुट के रूप में नहीं माना जा सकता है। जरा पीछे लौटिए और याद करिए कि पिछले वर्ष 24 जनवरी को अडानी समूह पर हिंडेनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद क्या स्थिति पैदा हुई थी? 
 
तब समूह का मार्केट कैप 19.2 लाख करोड़ था। इस रिपोर्ट के बाद उसकी 9 कंपनियों का वैल्यूएशन 150 अरब डालर तक घट गया था। धीरे-धीरे उसकी भरपाई हो रही है किंतु अभी भी वह उसे समय से 31% नीचे है। यद्यपि उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद तेजी से अडानी समूह के शेयर भाव उछले एवं उसी अनुसार सूचकांक भी। बावजूद उस क्षति की भरपाई एक बड़ी चुनौती है। 
 
प्रश्न है कि इसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाए? करोड़ों निवेशकों के जो धन डुबाने के लिए कौन दोषी है? सबसे बड़ी बात कि इससे भारत की छवि पूरी दुनिया में बिगड़ी उसकी भरपाई कौन करेगा?

हिंडेनबर्ग रिपोर्ट को आधार बनाकर दुष्प्रचार यही हुआ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं और उनकी सरकार एक उद्योगपति कारोबारी के लिए किसी सीमा तक जाने को तैयार है। उन्हें सरकार का राजनीतिक संरक्षण और सहयोग प्राप्त है जिनकी बदौलत ही यह कंपनी आगे बढ़ी है, अन्यथा इसकी अपनी क्षमता ऐसी नहीं है। यह सरकार और पूंजीपति के बीच शर्मनाक दुरभिसंधि का आरोप था। 
 
यह आरोप सच होता तो क्रॉनी केपीटलिइज्म का इससे बड़ा उदाहरण कुछ नहीं हो सकता। विश्व भर में निवेशकों और कारोबारियों के बीच यह छवि बन जाती कि वाकई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ही उद्योगपति और कारोबारी के हितों में नियम बनवाते हैं, उसे सत्ता का संरक्षण प्रदान करते हैं और इसी बदौलत समूह देश और दुनिया में अवैध तरीके से वित्तीय शक्ति का विस्तार कर रहा है तो फिर वे भारत से मुंह मोड़ लेते।‌ 
 
इसका संपूर्ण भारतीय अर्थव्यवस्था और आर्थिक रूप से महाशक्ति बनने के लक्ष्य पर क्या प्रभाव पड़ता, इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। वास्तव में हिंडेनबर्ग रिपोर्ट एक कंपनी पर अवश्य था किंतु इससे पूरे भारत सरकार और देश की नियति नत्थी हो गई थी।

हिंडेनबर्ग ने मुख्यत: यही कहा था कि अडानी समूह की वित्तीय हैसियत इतनी बड़ी है नहीं जितनी वह अंकेक्षण में दिखलाती है, वह अपना मूल्यांकन जानबूझकर ज्यादा करवाती है, जिससे उसके शेयर भाव बढ़े रहते हैं तथा टैक्स हैवन देशों में सेल कंपनियां बनाकर वह गलत निवेश करती है और इन सबमें उसे सत्ता का पूरा सहयोग और संरक्षण है। कोई कंपनी प्रधानमंत्री के वरदहस्त से काली कमाई करती हो इससे खतरनाक आरोप और क्या हो सकता है। 
 
साफ है कि जहां हिडेनबर्ग रिपोर्ट के पीछे केवल एक कंपनी की वित्तीय स्थिति को अपनी दृष्टि से सामने लाना नहीं था बल्कि निशाने पर नरेंद्र मोदी सरकार और उसके माध्यम से पूरा भारत था। जिस देश में इस ढंग से क्रॉनी केपीटलिइज्म हो उसकी दुनिया में साख और हैसियत कुछ हो ही नहीं सकती। 

प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि 2024 से 29 के बीच भारत विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बनेगा और 2047 तक विश्व की पहली श्रेणी का देश बनाना है तो निश्चय ही इससे अनेक देशों संगठनों, नेताओं, यहां तक की भारत के भी कुछ लोगों और समूहों के कलेजे पर सांप लोट रहा होगा। वो हर तरीके से इसमें बाधा उत्पन्न करने की कोशिश करेंगे। 
 
उच्चतम न्यायालय ने हिंडेनबर्ग रिपोर्ट के पीछे के इरादों या कानूनों के उल्लंघन, निवेशकों को हुए नुकसान के पीछे कारकों के जांच के लिए हरी झंडी दी है तो उम्मीद रखिए की आने वाले समय में पूरा सच सामने आएगा। उच्चतम न्यायालय की सुनवाई से इतना स्पष्ट हुआ कि भारत के एक नामी वकील के एनजीओ ने कंपनी के संदर्भ में सूचनाएं पहुंचाने में भूमिका निभाई थी। 
 
कुछ बातें महुआ मोइत्रा के संसदीय जांच समिति की रिपोर्ट से भी पता चलता है। यह सामान्य बात नहीं है कि एक शॉर्ट सेलिंग वाली कंपनी जो ऐसा करके मुनाफा कमा रही हो, उसे हमारे यहां शत-प्रतिशत सच मान लिया तथा अडानी समूह एवं तथ्यों पर बात करने वाले को गलत। दलीय राजनीति के बीच वैर-भाव इस सीमा तक न हो कि आपसी संघर्ष में देश का हित ही दांव पर लग जाए।
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)
ये भी पढ़ें
Lohri Recipes: इन 6 डिशेज के बिना अधूरा रहेगा लोहड़ी का उत्सव, नोट करें रेसिपी