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Last Modified: सोमवार, 16 जनवरी 2023 (13:01 IST)

जलेस के मासिक रचना पाठ में प्रदीप मिश्र ने किया कविता पाठ

जलेस के मासिक रचना पाठ में प्रदीप मिश्र ने किया कविता पाठ - jales masik rachana paath
इंदौर। जनवादी लेखक संघ इंदौर द्वारा आयोजित मासिक रचना पाठ के 112 वें क्रम में प्रदीप मिश्र ने कविता पाठ किया। शासकीय श्री अहिल्या केन्द्रीय पुस्तकालय में आयोजित इस कार्यक्रम में प्रदीप मिश्र ने अपनी चुनिंदा कविताओं का पाठ किया जिनमें प्रेमिका से बातचीत, हिंदी के कवि, जादूगर चमक, गांव, पगडंडी और सड़क, गुटका, थूक, ठंड, ठंड की धूप, पेड़ चलना चाहते हैं, पीपल थोड़ा सूख जाता है, शिक्षा के श्रेष्ठ समय में, अन्य पुरुष, होनहार बच्चे, लड़की प्रेम और कंप्यूटर, अकेली स्त्री, मैं एक शोध मशीन, इलेक्ट्रॉन घर्षण, लुब्रिकेंट आदि कविताएं शामिल थी। 
 
उनकी कविताओं की कुछ पंक्तियां उपस्थित श्रोताओं द्वारा बेहद सराही गई जैसे- हमारा मिलना/ एक नाभिकीय संलयन है/ जो मुझे सूर्य में बदल देता है (प्रेमिका से बातचीत), संक्रमण‌ से/ सरकार और सभ्य समाज भयभीत है (थूक)।
कविताओं पर चर्चा की शुरुआत करते हुए प्रदीप कान्त ने कहा की कविता की सार्थकता यही है कि वह हमारे समाज और समकाल को व्यक्त करें। इस दृष्टि से प्रदीप की कविताएं सफल हैं। इन कविताओं की दूसरी खासियत है इनमें प्रयुक्त वैज्ञानिक प्रतीक, जिनके माध्यम से हमारे समय और समाज की अभिव्यक्ति होती है, ऐसी कविताओं में मैं एक शोध मशीन, इलेक्ट्रॉन, घर्षण, लुब्रिकेंट आदि शामिल हैं। 
 
नेहा लिंबोदिया ने कहा कि इन कविताओं को सुनते हुए महसूस होता है कि कविताओं की गहराई क्या होती है। देवेंद्र रिणवा ने कहा की इन कविताओं में तमाम विषय देखे जा सकते हैं, चाहे वह स्त्री विमर्श हो, प्रेम हो, राजनीति हो, मनुष्य के प्रति प्रतिबद्धता। 
 
रमेश चंद्र ने कहा कि इन कविताओं में विज्ञान के माध्यम से जीवन नज़र आता है। वीरेंद्र ने इन कविताओं को सराहा। आतिश इंदौरी ने स्त्री के चरित्र में उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के प्रयोग को रेखांकित किया तो मनोज कुमार ने उत्तम पुरुष और लुब्रिकेंट जैसी कविताओं की तारीफ की और कहा कि यह कविताएं अपने विषय को बड़े बारीक ढंग से सामने लाती हैं। 
चुन्नीलाल वाधवानी ने भी इन कविताओं को सराहा। अलकनंदा साने ने कविताओं के बिंबो, प्रतीकों और भाषा को लेकर विस्तार से चर्चा की। रजनी रमण शर्मा ने कहा कि इन कविताओं में प्रदीप की कविता की विकास यात्रा साफ झलकती है। इन कविताओं में उनके विभिन्न विषय भी है तथा यह हमारे चिर परिचित प्रतीकों को लेकर एक ऐसा दृश्य खड़ा हो करती है जो हमारे समकालीन समाज का है। कार्यक्रम का संचालन किया प्रदीप कान्त ने और आभार देवेंद्र रिणवा ने।
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